Guruvani (Gurbani) transliteration in Nagari script and correct pronunciation. ---- An essay in Hindi

 गुरुवाणी के नागरी लिप्यंतरण व शुद्ध उच्चारण के कुछ नियम
     (Some rules for transliteration of Guruvani (Gurbani) in Devanagari script and correct            pronunciation thereof.)

                          
गुरुवाणी में निहित सार्वलौकिक ईश्वरीय संदेश के कारण गैर पंजाबी व गैर सिख  क्षेत्रों में भी गुरुवाणी की लोकप्रियता  निरंतर बढ़ रही है. लाखों लोग प्रसारण के आधुनिक माध्यमों जैसे रेडिओ टीवी इंटरनेट आदि की सहायता से गुरुवाणी का रसास्वादन कर रहे है.  परंतु एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो गुरुवाणी की भाषा तो समझता है पर गुरुमुखी लिपि से अनभिज्ञ होने के कारण स्वाध्याय व नित्य पाठ से वंचित है. इसका समाधान लिप्यंतरण से हो सकता है. एक अन्य वर्ग वह है जो न तो भाषा और ना ही लिपि  जानता है. इस वर्ग के लिये लिप्यंतरण व अनुवाद दोनों की आवश्यकता है. आज कम्प्यूटर का युग है और ऐसे  कई टूल्स उपलब्ध है जो लिप्यंतरण व अनुवाद दोनों करने का दावा करते है परंतु इनके अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये टूल्स इस काम के लिये नितांत असंतोषजनक  है.

 वैसे तो विश्व में अनेको लिपियाँ है परंतु  अगर केवल भारत  की बात की जाये तो  इस देश में नागरी व रोमन लिपि को केंद्रीय स्तर पर राजनैतिक  संरक्षण प्राप्त  होने के कारण इन के जानकार  बहुत अधिक संख्या मे है. गुरुवाणी के प्रचार और प्रसार के लिये इन दोनों लिपियों को प्रयोग अधिकाधिक किया जाना चाहिये.
गुरुवाणी  एक  अथाह सागर है जो साधारण मन बुद्धि से  परे  है परन्तु  फिर  भी  समय समय  पर लोगो  ने  अपनी अपनी बुद्धि के  अनुसार  अनुवाद व लिप्यंतरण के  प्रयोग किये  हैं  इन पंक्तियों के लेखक को गुरुवाणी के कुछ नागरी लिप्यंतरण देखने को अवसर मिला है परंतु खेद का विषय है के इनमें से बहुत से प्रयत्न गुरुवाणी के शुद्ध  पाठ मे सहायक सिद्ध नहीं हुए. अतः इस निबंध में  गुरु वाणी के लिप्यंतरण व उच्चारण के विषय को समझने का   एक  अल्प सा प्रयत्न किया गया है.

प्रत्येक लिपि की  अपनी कुछ विशेषताएँ व कुछ सीमाएं होती है इस लिये किसी भी लिप्यंतरक  को दोनों  लिपियों का  समुचित ज्ञान होना चाहिये. अधिकतर  लेखकों ने लिप्यंतरण करते समय  गुरुमुखी अक्षरों  को नागरी में जस का  तस रोपित कर दिया जो अशुद्ध पाठ  का कारण बना. दूसरे कई  लेखक गुरुवाणी व्याकरण से भी  अनभिज्ञ पाये  गये.
इस लेख में संक्षेप रूप  में  सही लिप्यंतरण  व उच्चारण को समझने का  एक अल्प  प्रयास किया गया है..
 
  1. पहली बात यह  समझने की है गुरुवाणी में  एक ही  शब्द  तत्सम और तद्भव दोनो रूपो मे प्रयोग किया गया  है  तत् सम  का अर्थ है  दूसरी भाषा  के शब्द को मूल  रूप  में  प्रयोग करना जब  कि  तद्भव रूप  में  उसी  शब्द को  अपनी भाषा के  स्वभाव के  अनुरूप बदल कर  प्रयोग किया जाता है.
यथा

तत्सम                                                    तद्भव
भय                                                        भउ
कृपा                                                      किरपा
प्रभु                                                        प्रभ
गुरु                                                        गुर

  इन शब्दों को ऐसे  ही भिन्न रूपों  में ही  लिखा व  उच्चारण किया   जाना चाहिये.

  1. कई शब्द ऐसे  है  जो गुरुमुखी तथा  नागरी में  भिन्न भिन्न प्रकार से  लिखे जाते  है  इन  को  लिप्यंतरण के  समय  नागरी के  नियम के  अनुसार ही लिखना चाहिये अन्यथा अशुद्ध पाठ  हो गा.
यथा:-
गुरुमुखी रूप           अशुद्ध नागरी रूप      शुद्ध नागरी रूप
ਦਇਆ                           दइआ                            दया
ਮਿਥਿਆ                         मिथिआ                          मिथ्या
 ਧ੍ਰਮ                                ध्रम                                धर्म
ਦ੍ਰੁਲਭ                             द्रुलभ                             दुर्लभ
ਕ੍ਰਿਪਾ                               क्रिपा                              कृपा

उच्चारण विधि

 गुरुवाणी का  अपना व्याकरण है  जो  पंजाबी या हिंदी के  व्याकरण  से कुछ   अलग  है.  शुद्ध उच्चारण हेतु उस  का  ज्ञान भी  आवश्यक है.

  लघु मात्राओं इ  तथा उ का उच्चारण

ग़ुरुवाणी के  प्रचलित उच्चारण के  अनुसार यदि  लघु  मात्राएं इ तथा  उ किसी शब्द के  अंत  में  आती  है  तो  उन  का उच्चारण  नहीं  किया जाता जो कि उचित प्रतीत नहीं  होता. ऐसी  लघु  मात्राओं का  उच्चारण तभी वर्जित होना चाहिये जब कि  इनका प्रयोग केवल अर्थ स्पष्ट  करने के  लिये किया गया हो  न कि  तब  जब  कि  ऐसी  मात्रा किसी शब्द का  अभिन्न अंग  हो. अतः हरि, प्रभु , भगति  शकति  गति आदि शब्दों में  मात्राओं का  उच्चारण सर्वथा उचित है परंतु यह  ध्यान 
रखा जाना चाहिये कि  लघु  मात्रा को  दीर्घ रूप  में  न  बोला जाये.

लघु  मात्रा इ  का संकेतात्मक / abbreviation प्रयोग 

 उदाहरण 

सति --     सत्य 
निरति --नृत्य 
मधि --- मध्य 
विचि -- विचोला ( मध्यस्थ )
दयि  -- दयालु   


लघु मात्रा का विभक्ति के रूप में प्रयोग

उदाहरण

शब्द         विभक्ति        अर्थ

प्रसादि        करण          प्रसाद द्वारा
मनि        अधिकरण        मन में     
मुखि             करण          मुख द्वारा      


कविता में मात्रा  पूर्ति  के लिए कभी  कभी लघु व् दीर्घ मात्रायें  आपस में बदल जाती दी जाती हैं 
जैसे  भगति, शकति  बंदी  व् संगी  की जगह  भगती, शकती , संगि  व् बंदि  का  प्रयोग  मिलता  है.

 लघु मात्रा उ का प्रयोग व उच्चारण 

वचन एवं लिंग बोध   उदाहरण 
सेवकु         एक वचन,पुल्लिंग  उच्चारण सेवक 
सेवक         बहुवचन 

हलंत

वाहु        वाह्

श ,ष, क्ष , बिंदी तथा हलंत

तत्कालीन गुरुमुखी लिपि में श और ष अक्षर नहीं है इसलिये  श की जगह स का और ष कि जगह ख अथवा स का   का प्रयोग किया गया है.  इसी प्रकार बिंदी  का  प्रयोग भी   यदा  कदा  ही  मिलता है.  लिप्यंतरण के  समय स  और ख  का  ही प्रयोग करे व अपनी ओर  से  बिंदी ना  लगाये .परंतु उच्चारण के  समय विवेकानुसार उच्चारण कर  सकते हैं. यथा सरण की जगह  शराण उच्चारण  अशुद्ध नहीं  है इसी  प्रकार  देदा का देंदा व सिमरउ का  सिमरउं उच्चारण कर सकते है.

हलंत का  अभाव---गुरुवाणी में कदाचित ह य और र क छोड  कर अन्य अक्षरों   का  हलंत (आधा) रूप नहीं  मिलता कुछ  स्थानों पर शब्द  के आरम्भ में  आये स् ( हलंत स ) से  पूर्व अ अथवा इ का प्रयोग किया गया  है जैसे असथिर (स्थिर) असथान (स्थान) इस्नान ( स्नान ).अन्यत्र इ और  उ लघु  मात्राओं  का  प्रयोग कर के  भी  अक्षर  को हलंत रूप  दिया गया है  यथा सति (सत्) वाहि (वाह्) वाहु (वाह्) इत्यादि. विवेकशील पाठक  इस नियम  को  भी  ध्यान में  रख कर  शुद्ध उच्चारण करे.
 उच्चारण और विशेषतया अर्थ करते समय  संदर्भ तथा गुरुवाणी के मूल सिद्धांत  का ज्ञान भी  आवश्यक है.
उपरोक्त को  कुछ  उदाहरण दे  कर  नीचे समझाया गया है.

मूल गुरुमुखी पाठ
ਵੇਮੁਹਤਾਜਾ 
ਵੇਪਰਵਾਹੁ 
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕਹਹੁ ਗੁਰ ਵਾਹੁ 


शुद्ध लिप्यंतरण

वेमुहताजा वेपरवाहु
नानक दास कहहु गुर वाहु

शुद्ध उच्चारण
वेमुहताजा वेपरवाह

नानक दास कहहु गुर वाह 

मूल गुरुमुखी पाठ

ਤੁਮਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਨੀ

शुद्ध लिप्यंतरण ::‌             तुमरी गति मिति  तुम ही जानी
अशुद्ध लिप्यंतरण               तुम्हरी गति मिति तुम ही जानी
शुद्ध उच्चारण                  तुमरी गति  मित तुम ही जानी
अशुद्ध उच्चारण 1              तुमरी गत मित  तुम  ही  जानी
अशुद्ध उच्चारण 2                          तुम्हरी गती  मिती   तुम  ही  जानी.

मूल  ग़ुरुमुखी पाठ

ਭੁਗਤਿ ਗਿਆਨੁ ਦਇਆ ਭੰਡਾਰਣਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਾਜਹਿ ਨਾਦ

शुद्ध लिप्यंतरण:             भुगति गिआनु  दया  भंडारणि घटि घटि वाजहि  नाद
अशुद्ध  लिप्यंतरण:          भुगति गिआनु  दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद
शुद्ध उच्चारण                      भुगति गिआन दया भंडारण घट घट वाजहि नाद
अशुद्ध  उच्चारण 1          भुगत गिआन दया  भंडारण घट घट  वाजे नाद
अशुद्ध उच्चारण 2         भुगती गिआन दइआ भंडारणी घटी घटी वाजही नाद

मूल  ग़ुरुमुखी पाठ

ਰਾਮੁ ਗਇਓ ਰਾਵਨੁ ਗਇਓ ਜਾ ਕਉ ਬਹੁ ਪਰਵਾਰੁ

शुद्ध लिप्यंतरण:           रामु गयो  रावनु  गयो जा कउ बहु परवारु
अशुद्ध लिप्यंतरण:        रामु गइओ रावन गइओ जा कउ बहु परवारु
शुद्ध उच्चारण               राम गयो रावन गयो  जा कउ बहु परवार
अशुद्ध उच्चारण            रामु गयो रावनु  गयो जा को बहु परवारु


शुद्ध लिप्यंतरण:            कहि  कबीर जीवन पद  कारनि हरि की भगति करीजै
 शुद्ध उच्चारण                कहि कबीर जीवन पद कारन हरि  की  भगति करीजै.
अशुद्ध उच्चारण              कह कबीर जीवन पद कारन हर  की  भगत करीजै
नियम :- भुगति गति भगति व हरि में इ लघु मात्रा मूल शब्द का अभिन्न अंग है जब कि  घटि और कारनि  मे  मात्र विभक्ति  है
रामु और रावनु  में  लघु  उ की  मात्रा एकवचन पुल्लिंग व्यक्तिवाचक संज्ञा की  सूचक है जब कि मूल शब्द राम और रावन (रावण)  है परवारु में  उ किसी विशेष परिवार का  सूचक है  जाति  वाचक नहीं.  मिति  में इ मित व मितु  (मित्र) से भिन्नता की  सूचक {मूल शब्द मित  (सीमा)}

मूल गुरुमुखी  पाठ

शुद्ध लिप्यंतरण:         सिमरउ  सिमरि सिमरि सुख  पावउ
शुद्ध उच्चारण:           सिमरउं   सिमर सिमर सुख  पावउं

संयुक्त अक्षर 

क्ष  को ख्य लिखा मिलता है जैसे कटाक्ष  को कटाख्य 

 
अपवाद

गुरुवाणी में  उपरोक्त नियम सामान्यतः प्रयोग किये गये  है  परंतु  अनेक स्थानों पर  इन  का अपवाद भी देखने को  मिलता है. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जैसे विशद ग्रंथ में  जिन के  अनेकानेक प्रतिरूप आरम्भ में  हस्त लेखन के द्वारा किये गये, ऐसा होना सर्वथा स्वाभाविक है. ग़ुरुवाणी के  व्याकरण  और  शुद्ध  उच्चारण के  विषय में  अभी  और  शोध  की  आवश्यकता है.

DISCLAIMER
उपरोक्त विचार एक  तुच्छ बुद्धि लेखक के व्यक्तिगत विचार है गुरु पूर्ण व सर्वज्ञ है लेखक नितांत अपूर्ण व अल्पज्ञ है. अतः  किसी भी भूल  के  लिये लेखक अग्रिम रूप  से  क्षमा प्रार्थी है..
इस लेख  में और  सुधार के  लिये सुझाव आमंत्रित    है.

धन्यवाद !






  

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