Kabiowach Benati Chaupai Pa: 10 (the tenth Guru)- Mool Path in Hindi

पा. 10 कब्योवाच बेनती चौपई
हमरी करहु हाथ दै रछा               
पूरण होइ चित की इछा  
तव चरणन मन रहे हमारा   
अपना जान करो प्रतिपारा (1)
हमरे दुष्ट सबै तुम घावहु
आप हाथ दै मुझे बचावहु
सुखी बसै मेरो परिवारा
सेवक सिख सबै कर्तारा (2)
मो रछा निज कर दै करिये          
सब बैरिन को आज संहरिये    
पूरन होइ हमारी आसा 
तोर भजन की रहे पिआसा (3)
तुमहि छाडि कोइ अवर ना ध्याऊ  
जो बर चाहू सो तुम ते पाऊ                 
सेवक सिख हमारे तारियै              
चुनि चुनि सत्रु हमारे मारियै (4) 
आप हाथ दै मुझे उबरियै
मरण  काल का त्रास निवरियै
हूजो सदा हमारे पछा
स्री असिधुज जू करियहु रछा (5)
राखि लेहु मोहि राखन हारे
साहिब संत सहाइ  पिआरे
दीन बब्धु दुष्टन के हंता
तुम हो पुरी चतुरदस कंता (6)
काल पाइ ब्रह्मा बपु धरा
काल पाइ शिवजू अवतरा
 काल पाइ करि बिसनु परकासा
सकल काल का किया तमासा (7)
जवन काल जोगी शिव कीयो
बेद राज ब्रह्माजू थीयो
जवन काल सब लोक संवारा
नमस्कार है ताहि हमारा (8)
जवन काल सब जगत बनायो
देव दैत जछन उपजायो
आदि अंत एकै अवतारा
सोइ गुरु समझिहु हमारा (9)
नमस्कार तिसहि को हमारी
सकल प्रजा जिन आप संवारी
सिवकन को सिवगुन को सुख दीयो
सत्रुन को पल मो बध कीयो (10)
घट घट के अंतर की जानत
भले बुरे की पीर पछानत
चींटी  ते कुंचर अस्थूला
सब पर क्रिपा द्रिष्टि करि फूला (11)
संतन दुख पाये ते दुखी
सुख पाये  साधुन के सुखी
एक एक की पीर पछानै
घत घत के पत पत पत की जानै (12)
जब उदकरख करा कर्तारा
प्रजा धरत तब देह अपारा
जब आकर्ख करत हो कबहू
तुम मै मिलत देहधर सबहू (13)
जेते बदन स्रिष्टि सब धारे
आप आपनी  बूझ उचारे
तुम सब ही ते रहत निरालम
जानत बेद भेद अरु आलम (14)
निरंकार निर्बिकार निर्लम्भ
आदि अनील अनादि असम्भ
ताका मूढ उचारत भेदा
जाका भेद ना पावत बेदा (15)
ताकौ करि पाहन अनुमानत
महा  मूढ कछु भेद ना जनत
महदेव को कहत सदसिव
निरंकार का चीनत नही भिव (16)
आप आपनी बुधि है जेती
बरनति भिन्न भिन्न तोहि तेती
तुमरा लखा ना जाये पसारा
केहि बिधि सजा प्रथम संसारा (17)
एकै रूप अनूप सरूपा
रंक भयो  राव कही भूपा
अंडज जेरज सेतज कीनी
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी (18)
कहू फूलि राजा होइ बैठा
कहू सिमटि भयो संकर इकैठा
सगरी स्रिष्टि दिखाइ अचम्भव
आदि जुगादि सरूप स्वयम्भव (19)
अब रछा मेरी तुम करौ
सिख उबार असिख संघरौ
दुष्ट जिते उठवत उतपाता 
सकल मलेछ करो रणघाता (20)
जे असि धुज तव सरनी परै
तिन के दुष्ट  दुखित होइ मरै
पुरख जवन पग परे तिहारे
तिन के तुम संकट सब टारे (21)
 जो कलि को इक बार ध्याहि है
ताके काल निकट नहि आइ है
रछा होइ ताहि सब काला
दुष्ट अरिष्ट टरै तत्काला (22)
क्रिपा द्रिष्टि तन जाहि  निहरिहो
ताके ताप तनिक मो हरिहो
रिधि सिधि घर मो  सब होइ              
दुष्ट  छाह छ्वै सकै ना कोइ (23)
एक बार जिन तुमहि सम्भारा
काल फास ते ताहि उबारा
जिन नर नाम तिहारो कहा
दारिद दुष्ट दोख ते रहा (24)
खड्ग केतु मैं सरन तुहाऱी  
आप हाथ दै लेहु उबारी
सरब ठौर मोहि होहु सहाई
दुष्ट दोख ते लेहु बचाई (25)

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